Tuesday, March 26, 2013

होली



काश इस होली घर पर होते,
माँ के हाथ से गुझिया खाए ज़माने हो गए...

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Tuesday, March 5, 2013

पल



ए राही क्यूँ नहीं समझता तू ,
क्या ज़िन्दगी की इस दौड़ में बस भागा चला जाएगा?

मन की हर मुराद को मसल,
क्या बड़ी इमारतें बनाता चला जाएगा?

इक पल तो बैठ, सांस ले ज़रा ,
बेड़ियाँ हटा, थोडा सा जी ले ज़रा। 

क्यूंकि ये पल, गर हो गया कल,
तो बहुत याद आएगा, बहुत याद आएगा, बहुत आएगा।

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