Thursday, February 19, 2015

कुछ पिघल सा गया हूँ मैं



ये जो मुस्कुरा कर 
दिल में इक लौ सी 
जला गयी  हो, उससे 
कुछ पिघल सा गया हूँ मैं 

तन्हा रात की सर्द हवाओं में 
जो ये साथ होने का गर्म एहसास 
दिला गयी हो, उससे 
कुछ पिघल सा गया हूँ मैं 

जो हो कर भी आज तुम
पास नहीं हो 
उस बदनसीबी के आलम में 
कुछ पिघल सा गया हूँ मैं 

आज कुछ पिघल सा गया हूँ मैं 

* * * * *

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